जानिए Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai?

Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai इसके पीछे इसकी काल विशेषताएं और कारण हैं। ये सबका विधान निम्नलिखित है –

भक्तिकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा – डॉ श्यामसुन्दरदास ने भक्तिकाल की अवधि में कबीर सुर जायसी तथा तुसली जैसे रस-सिद्ध कवियों तथा महात्माओं को अंत कारण से निकली रसमयी काव्यवाणी को लक्ष्य बनाकर इस युग को हिंदी साहित्य में स्वर्ण युग की दी है। इस काल में लोकहित को फिर से सांस्कृतिक गौरव से युक्त एवं अनुपात में उत्कृष्ट काव्य को लक्ष्य द्वारा इस स्वर्णयुग माना जाता है। डॉरोजराय भी इस काल को स्वर्णयुग कहते हैं। इसके बाद से Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai निश्चय ही युग में रचित साहित्य अन्य कालों की तीक्षा एवं महान है।

पहला आधार – Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai इसका पहला आधार है की आधुनिक युग कोएंडकर केवल यही ऐसा है जिसमें कई प्रकार की काव्य प्रवृतियाँ और काव्य शैलियाँ विशित हुई उनमें से उच्चकोट की साहित्य की रचनाएँ हुईं। इसलिए सत्य और दोष दोनों ही दृष्टि से यह अन्य कालों की चमक अधिक श्रेष्ट हैं।

निर्गुण काव्यधारा का विकास – इस युग में निर्गुण काव्यधारा का विकास हुआ जिसमें रामानंद की साधना वैष्णव भक्तों की मधुरोपासना तथा सूफियों की प्रेम की पीरा का भाव वर्तमान था।

सगुणोपासना का विकास – दूसरा और भगवन को निर्गुण तथा निराकार की नीरस उपासना के विरोध में प्रवर्तित सगवोपासना का विकास हुआ जिसमें रामोपास दल ने विष्णु के अवतार राम की जीवनलीला का गायन करके लोकधर्म का आदर्श किया तथा कृष्णोपासक साल ने जीवनलीला का गायन करके लोकधर्म का आर्दशा स्थापित किया गया और कृष्णपासक दाल ने कृष्ण की लीलाओं का गायन करके लोकधर्म का आदर्श स्थापित किया और कृष्णोपास दल ने कृष्ण की लीलाओं का गायन करके जनमन को समय पर दिया।

सूफी संप्रदाय का विकास – तीसरा और सूफी संप्रदाय का विकास हुआ। इस संप्रदाय के कवियों ने इस्लाम की कट्टरता से दुःखी भारतीय जनता को प्रेम की पीर का पाठ पढ़ाकर सुखी बनाया।

इस प्रकार इस युग में निरणोपासक काव्यधारा सुगुणोपासक

काव्यधारा का प्रेममार्गी सूफी काव्या धारा का विकास हुआ। ये धाराएँ लोकरंजन ही नहीं लोकरक्षण भी करती हैं।

Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai के अन्य कारण

अनेकता में एकता का संदेश – भक्तिकालीन साहित्य की दूसरी विशेषता जिसके आधार पर Bhakti Kaal Ko Swarn Yug Kyon Kaha Jata Hai। ये अनेकता में एकता का सन्देश प्रदान करता है विविधता में एकता का यह सूत्र वैष्णव भक्त कवियों के हाथ में था धर्म समाज और दर्शन-तीन क्षेत्रों में एकता का अधिकार भवन इसकी सबसे बड़ी प्रमुखता है।

भारतीय संस्कृति की आख्याता भक्तिकाल – इस काल की विशेषता है की इस अवधी में भारतीय संस्कृति के विविध अंगों पर पर्याप्त मात्रा में लिखा गया है। भारतीय संस्कृति का आधार तत्व है – आध्यात्मिकता धर्म नियति पर विश्वास विश्वबंधुत्व का भाव गुरुजनों का सम्मान त्याग का महत्व पट और संयम की आवश्यकता अहिंसा तथा सहनशीलता शुक्र का भाव वीरपूजा और अवतार-प्रतिष्ठा वर्णाश्रम धर्म तथा जाति-पाँति की स्वीकृति ज्ञान की महत्ता संतोष तथा शांति की मंहत और समन्वय के भवन। भक्तियुग के कवियों ने इन तत्वों पर विसरतारपूर्ण लिखा है।

उत्कृष्ट काल की संरचना का युग – भक्तिकाल की चार विशेषताएँ इस युग को स्वर्ण युग कहा जाता है जिसे श्रेष्ठा कावय की सर्जना कहा जाता है। क्यूंकि यह है भक्तिकाल के साहित्य की परख रास विधान की दृष्टि से जायज कलापक्ष के उत्कर्ष की दृष्टि से तथा छाया उस पर लोकहित की दृष्टि से विचार करें चाहे संस्कृति विकास की दृष्टि से सभी तरह से वह अन्य युगों की तीक्ष्णता है । यही कारण है कि भक्तिकाल को स्वर्णयुग कनेक्शन कहा जाता है।

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