जानिए Vyanjan Kitne Prakar Ke Hote Hain

हिंदी व्याकरण के इस अध्याय में हम लोग जानेंगे कि व्यंजन कितने होते हैं और Vyanjan Kitne Prakar Ke Hote Hain?

व्यंजन की परिभाषा

व्यंजन वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है। प्रत्येक व्यंजन ‘अ’ का उच्चारण करने पर मिश्रित स्वर ध्वनि होती है। व्यंजन का उच्चारण करते समय मुख से निकलने वाली वायु के मार्ग में अवरोध हो जाता है। क,  च, ट आदि के रूप में।

प्रत्येक व्यंजन जिसमें अ होता है, पूर्ण उच्चारित होता है; जब एक अ को हटा दिया जाता है, तो व्यंजन रूप हलन्त के साथ हो जाता है. जैसे- क्, ख्, ग्, घ् आदि।

कितने व्यंजन होते हैं

वर्णमाला से स्वरों को हटाने के बाद, शेष वर्ण क, ख, ग, घ…आदि व्यंजन हैं। हिंदी में मुख्यतः 33 व्यंजन होते हैं। परन्तु इसमें द्विव्यंजन ड़, ढ़ जोड़ने पर इनकी संख्या 35 हो जाती है।

इनके अतिरिक्त चार यौगिक व्यंजन हैं- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।

Vyanjan Kitne Prakar Ke Hote Hain

व्यंजन मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-  

  • स्पर्श व्यंजन  
  • अन्तस्थ व्यंजन 
  • ऊष्म व्यंजन 

स्पर्श व्यंजन (sparsh vyanjan)

स्पर्श व्यंजन ऐसे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण तब किया जाता है जब जीभ मुंह के अंदर विभिन्न स्थानों को छूती है। क से म तक, 25 स्पर्शनीय व्यंजन हैं, जिन्हें 5 श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

  • क वर्ग-   क ख ग घ ङ
  • च वर्ग-   च छ ज झ ञ
  • ट वर्ग-   ट ठ ड ढ ण
  • त वर्ग-   त थ द ध न
  • प वर्ग-   प फ ब भ म

इनका उच्चारण क्रमशः कन्ठ, तालु,  मूर्द्धा, दंत्य, ओष्ठ इत्यादि के जीभ के अग्र भाग के स्पर्श से होता है।

अन्तस्थ व्यंजन (antastha vyanjan)

आंतरिक व्यंजन वे वर्ण होते हैं जिनका उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच में आता है और जिनकी जीभ उच्चारण के समय मुंह के अंदर मुश्किल से स्पर्श करती है। इनके अंक 4- य, र, ल, व होते हैं।

इन चार अक्षरों में से, य और व को उनके बोलने के तरीके के कारण संघर्ष रहित अक्षर या अर्ध-स्वर भी कहा जाता है।

ऊष्म व्यंजन (ushm vyanjan)

ऊष्म व्यंजन शब्दांश होते हैं जो उच्चारित होने पर ऊष्म और वायु उत्पन्न करते हैं  जो उच्चारण करते समय मुंह के विभिन्न क्षेत्रों के खिलाफ रगड़ती है। ऊष्म  व्यंजनों की संख्या 4 है – श,ष,स ह।

आइए कुछ महत्वपूर्ण हिंदी व्यंजन अवधारणाओं को भी समझते हैं जो व्यंजन के अंतर्गत आती हैं।

व्यंजन एवं उसके विभिन्र रुप

उत्क्षिप्त व्यंजन

उत्क्षिप्त व्यंजन वे अक्षर होते हैं जिनका उच्चारण जीभ के अग्र भाग को झटके से किया जाता है। इनकी दो अंकों की संख्या ड़ और ढ़ है। इन्हें “द्विगुण व्यंजन” के नाम से भी जाना जाता है। इन व्यंजनों को बनाने के लिए उच्चारण में आसानी के लिए ड, ढ के नीचे एक बिंदु (़) जोड़ा जाता है। यह हिंदी के द्वारा विकसित किए गए व्यंजन है।

संयुक्त व्यंजन

संयुक्त व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजन के योग से बनता है। इनकी संख्या चार होती है- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र।

संयुक्त व्यंजन के उदहारण-

  • क् + ष = क्ष
  • त् + र = त्र
  • ज् + ञ = ज्ञ
  • श् + र = श्र

अयोगवाह –

अनुस्वर (ं), विसर्ग (ः) को स्वरों के साथ रखा जाता है परंतु ये स्वर ध्वनियाँ भी नहीं हैं। इन उच्चारण व्यंजन की तरह स्वर की सहायता से होता है। ये उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन और लेखन की दृष्टि से स्वर होते हैं।

ये जातीय योग न तो स्वर के साथ ना ही व्यंजन के साथ होता है क्योंकि इसे अयोग कहा जाता है, फिर भी ये अर्थ वहन करते हैं इसलिए इसे अयोगवाह कहा जाता है।

विसर्ग (ः) –

विसर्ग (:) का प्रयोग स्वर के बाद किया जाता है। इसका प्रयोग संस्कृत में मिलता है, फिर भी हिंदी में इसका प्रयोग हम लोग निम्न प्रकार से कर सकते हैं –

प्रातः, अंतः करण, दु:ख इत्यादि।

चन्द्रबिन्द (ँ) –

यह हिंदी का अपना धोनी है यह संस्कृत में नहीं पाई जाती। इसके उच्चारण के समय हवा मुंह और नाक दोनों से चलती है। उदाहरण के रूप में – गावँ, पावँ,  चाँद इत्यादि।

हलंत (्) –

जहाँ दो अक्षरों को जोड़ने में कठिनाई होती है वहाँ हलंत का प्रयोग किया जाता है। जैसे- बूढ़ा, गड्ढा आदि।

रेफ –

जब व्यंजन अक्षर के ऊपर ‘र’ का चिन्ह लगाया जाता है तो उसे रेफ कहते हैं। जैसे धर्म, वर्ण, अर्थ आदि।

चन्द्र (ॅ)

कुछ शब्दों में इस चिह्न का प्रयोग होता है। यह बिंदु अनुपयोगी चंद्र है जिसका उच्चारण औ के समान होता है (आ के समान नहीं)। प्राय अंग्रेजी शब्दों के साथ ही इसका प्रयोग होता है। जैसे – नालेज, डॉक्टर, ऑफिस इत्यादि।

इस प्रकार हम लोगों ने हिंदी व्यंजन के कुछ महत्वपूर्ण प्रकारों के बारे में समझा। हिंदी व्यंजन के वर्गीकरण को भी निम्न आधार पर समझते हैं।

व्यंजन का वर्गीकरण

हिंदी व्यंजन को निम्न आधार पर बांटा जा सकता है –

उच्चारण स्थान के आधार पर –

स्वरयंत्र मुखी –  ह

कंठ्य – क, ख, ग, घ, ङ

तालव्य – च, छ, ज, झ, ञ, य, श

मूर्धन्य – ट,ठ, ड, ढ, ण, ष

वत्सर्य – न,ल, र, स

दन्त्य – त, थ, द, ध

ओष्ठ्य – ….

दन्त्योष्ठ्य – व, फ

दव्योष्ठय – प, फ, ब, थ, म

उच्चारण प्रयत्न के आधार पर –

स्पर्श –  क, ख, ग, घ, ट,ठ, ड, झ,  त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ

स्पर्श-संघर्षी – च, छ, ज, झ

संघर्षी – स, श, ष

पार्श्विक – ल

लुंठित – र

उत्क्षिप्त – ड़, ढ़

अन्तस्थ या अर्द्धस्वर – य, व

अनुनासिक – ङ, ञ, ण, न, म

उच्चारण प्रयत्न ( बाह्य प्रयत्न)  के आधार पर –

घोष – जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरतंत्र में कंपन होता है उसे घोष या सघोष व्यंजन कहते हैं। (प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवा व्यंजन सघोष व्यंजन होता है)

अघोष– जिन वर्णों के उच्चारण में स्वर तंत्र में कंपन ना हो उसे अघोष व्यंजन कहते हैं। (इसके अंतर्गत प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा व्यंजन आता है)

अल्पप्राण – वर्णों के उच्चारण में जब वायु कम मात्रा में होती है तो उसे अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं।  (इसके अंतर्गत प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा, पांचवा व्यंजन आता है)

महाप्राण – वर्णों के उच्चारण में जब वायु अधिक मात्रा में लगती है तो उसे महाप्राण व्यंजन कहते हैं। (इसमें प्रत्येक वर्गका दूसरा तथा चौथा व्यंजन आता है)

पेशीय तनाव के आधार पर –

कठोर – इसके अंतर्गत अघोष और महाप्राण व्यंजन आते हैं

शिथिल  –  इसके अंतर्गत घोष और अल्पप्राण व्यंजन आते हैं

निष्कर्ष 

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने जाना की व्यंजन क्या है Vyanjan Kitne Prakar Ke Hote Hain और साथ ही  इनके  वर्गीकरण को समझा आशा है की आपको ये आर्टिकल पसंद आया हो   

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